Kuber Dev - कुबेर देव की कथा।

Kuber Dev - कुबेर देव की कथा
Kuber Dev - कुबेर देव की कथा
वैश्रवण! अर्थात धन के देवता कुबेर! जी हां मित्रों रावण के सौतेले भाई का नाम वैश्रवण अथवा Kuber Dev था। जिनकी पूजा आज भी हिंदू धर्म में होती है। पुष्पक विमान और लंका नगरी भी सर्वप्रथम इन्हीं को मिली थी। 

लेकिन! कैसे वैश्रवण से बनें Kuber Dev एवं कैसे मिली इन्हें लंकापुरी और पुष्पक विमान आईए जानते हैं। नमस्कार दोस्तों मैं JAY PANDEY आपका www.jaypandey.in पर स्वागत करता हूं।

ऋषि विश्रवा का विवाह महर्षी भारद्वाज की पुत्री से हुआ था। उन्होंने उस कन्या के गर्भ से एक पराक्रमी तथा अद्भुत पुत्र उत्पन्न किया जो उनके समान ही समस्त गुणों से सम्पन्न था।

$ads={1}

Kuber Dev - कुबेर देव की कथा।

इसे भी पढ़ें: रावण कुल की उत्पत्ति कैसे हुई?

उस बालक में सभी ब्राह्मणोचित गुण विद्यमान थे। बालक के जन्म से पितामह महर्षि पुलस्त्य मुनि अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने अपनी तपस्या शक्ति द्वारा ध्यान करके देखा तो उनको ज्ञात हुआ कि यह बालक आगे चलकर धनाध्यक्ष तथा कल्याणप्रद बुद्धि वाला होगा।

इस बात को जानने के बाद महर्षि पुलस्त्य ने प्रसन्न होकर अन्य देवर्षियों के साथ मिलकर उस बालक का नामकरण कर दिया। महर्षि पुलस्त्य ने कहा मेरे पुत्र विश्रवा का यह पुत्र उसके गुणों के समान ही है। अत: यह वैश्रवण नाम से प्रसिद्ध होगा।

इसके पश्चात् वैश्रवण उस तपोवन में रहते हुए हवनकुण्ड में प्रज्वलित आग के समान महा तेजस्वी और तपस्वी के रूप में बढ़ने लगे। आश्रम में रहते हुए महात्मा वैश्रवण के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि वे वहां उत्तम धर्म का आचरण करें क्योंकि धर्म-कर्म का काम ही परम गति है।  

Kuber Dev अत्यंत कठोर नियमों में बंधकर एक सहस्र वर्षो तक कठोर और महान तपस्या की। एक वर्ष पूरा हो जाने पर वह तपस्या करने की नयी-नयी विधि का प्रयोग करते थे। वह केवल पानी पीकर ही रहते थे। 

बाद में केवल हवा को ही अपना भोजन बना लिया और अंत में तो उन्होंने बिना कुछ खाए-पिए घोर तपस्या की। इस प्रकार उन्होंने अनेक वर्षों को एक वर्ष की भांति ही बिता दिया।

वीडियो देखें।

Kuber Dev Ki Katha - कुबेर देव की कहानी।

Kuber Dev की इस तपस्या से प्रसन्न होकर इन्द्र तथा अन्य देवताओं ने ब्रह्मा जी के साथ उस आश्रम में पहुंचकर कहा हे वत्स! तुम बहुत ही उत्तम धर्म का पालन कर रहे हो मैं तुमसे बहुत संतुष्ट हूँ। हे महामने! तुम्हारा कल्याण हो।

हे भद्र! तुम कोई वरदान मांगो क्योंकि तुम इस वरदान के पात्र हो यह सुनकर वैश्रवण जी ने अपने पास खड़े पितामह ब्रह्मा जी से कहा - हे भगवान! में जनता की रक्षा करने के लिए उनका लोकपाल बनना चाहता हूँ।

वैश्रवण के मुंह से निकले इन शब्दों को सुनकर प्रजापति ब्रह्मा जी का मन अत्यधिक प्रसन्न हो गया। उस समय ब्रह्मा जी ने देवताओं के साथ मिलकर कहा बहुत अच्छा! मैं भी सृष्टि के चौथे लोकपाल की तैयारी में था।

जिस प्रकार यम, वरुण तथा इन्द्र को लोकपाल के पद प्राप्त हैं, उसी तरह का पद तुम्हें भी मिलेगा। तुम इस पद को स्वीकार करके निधियों के स्वामी या प्रतिनिधि बन जाओ। उन्होंने कहा-वरुण यम तथा इन्द्र की तरह तुम चौथे लोकपाल होगे।

दोस्तों इस प्रकार बैश्रवण को Kuber Dev की उपाधि प्राप्त हुई। अब आईए जानते हैं कि Kuber Dev को लंका नगरी और पुष्पक विमान कैसे मिली।

इसके पश्चात ब्रह्मा जी ने Kuber Dev से पुनः कहा सूर्य के समान यह जो तेजस्वी 'पुष्पक' नाम का विमान है,  इसे तुम अपनी सवारी के रूप में ग्रहण करो और देवताओं के समान बन जाओ।

$ads={2}

Who Was Kuber Dev - कुबेर देव कौन हैं?

हे तात! तुम्हारा कल्याण हो जिस प्रकार हम सब आए थे अब उसी प्रकार जा रहे हैं। तुमको यह दो वरदान देकर हम अपने को कृत-कृत समझते हैं।

इतना कुछ कहने के बाद प्रजापति ब्रह्मा जी अन्य देवताओं को साथ लेकर देव लोक की ओर चल दिए। ब्रह्मा जी तथा अन्य देवताओं के चले जाने के बाद वैश्रवण जी अर्थात् Kuber Dev ने अपने दोनों हाथों को जोड़कर अपने पिता से विनम्रता पूर्वक कहा-

हे भगवान्! मैंने आज पितामह ब्रह्मा जी से अभीष्ट वरदान प्राप्त किया है। लेकिन! प्रजापति ब्रह्मा जी ने मेरा कोई निवास स्थान नहीं बताया। अतह अब आप ही मेरे लिए निवास स्थान की खोज कीजिए जो अच्छा हो तथा जहाँ मेरे रहने से किसी भी प्राणी को कोई कष्ट न हो।

मुनिश्रेष्ठ विश्रवा ने अपने पुत्र के इन शब्दों को सुनकर कहा हे धर्मज्ञ! हे साधु! तुम मेरी बात सुनो- दक्षिणी समुद्र तट पर त्रिकूट नाम का पर्वत है। उस पर्वत पर एक विशाल नगरी बसी हुई है जो इन्द्रपुरी अमरावती के समान ही सुन्दर तथा आकर्षक है।

लङ्का' नामक उस रमणीय पुरी को विश्वकर्मा ने असुरों के निवास के लिए बनाया था। वह इन्द्र की अमरावती पुरी की तरह ही है। हे भद्र! उस लंका में जाकर तुम निःसंदेह बस जाओ। यह नगरी यंत्र और शस्त्रों से सुरक्षित तथा स्वर्ण की चहार दीवारी से युक्त है।

स्वर्ण और नीलम निर्मित कारकों वाली वह रमणीय नगरी है। पूर्वकाल में भगवान विष्णु के भय के कारण असुर इसे त्याग कर रसातल की तलहटी में चले गए थे। उस समय से यह लङ्का नगरी अब तक सूनी पड़ी है। उसका कोई भी स्वामी नहीं है।

Kuber yantra, Kuber Dev - कुबेर यंत्र
श्री कुबेर यंत्र

Kuber Dev Ki Kahani - कुबेर देव की पूजा।

अत: हे पुत्र! तुम यहां सुख पूर्वक रहने के लिए प्रस्थान करो। वहां रहने में न तो किसी प्रकार की विघ्न या बाधा और ना ही कोई दोष है। अपने पिता द्वारा धर्म युक्त वचनों को सुनकर धर्मात्मा वैश्रवण ने त्रिकूट पर्वत पर बसी उस लङ्का पुरी नामक नगरी में जाकर रहना शुरू कर दिया।

वैश्रवण अर्थात Kuber Dev के उस स्थान पर जाकर रहते ही यह नगरी कुछ ही दिनों में हृष्ट-पुष्ट एवं सहस्रों नैर्ऋतों अर्थात असुरों की एक जाति से भर गईं। वे सभी वहां धर्मात्मा वैश्रवण के अधीन सुख पूर्वक रहने लगे।

समुद्र की तरह खाई वाली उस लङ्का पुरी में विश्रवा के पुत्र धर्मात्मा Kuber Dev असुरों के स्वामी बनकर सुख के साथ रहने लगे। समय-समय पर विनीत स्वभाव वाले धर्मात्मा Kuber Dev पुष्पक विमान में बैठकर अपने माता-पिता से मिलने चले जाते थे।

गण तथा देवता उनकी स्तुति किया करते थे। उनकी नगरी का भवन सुंदर अप्सराओं के नृत्य से विभूषित रहता था। सूर्य के समान प्रकाशित धर्मात्मा वैश्रवण अर्थात् Kuber Dev स्वयं अपना प्रकाश बिखेरते हुए वहां रहने लगें।

तो मित्रों ये थी Kuber Dev Ki Kahani जो आपको अच्छी लगी होगी। जानकारी आपको कैसी लगी कॉमेंट जरूर करें। कुबेर देव की कहानी सुनने मात्र से ही आपका भाग्य बदलने लगता है धन के रास्ते खुलने लगते हैं। www.jaypandey.in पर अपना कीमती समय देने के लिए आपका धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो।

Post a Comment

जय लक्ष्मीनारायण जी

और नया पुराने