Thakur Sujan Singh - ठाकुर सुजान सिंह

Thakur Sujaan Singh 1679 - ठाकुर सुजान सिंह 1679
Thakur Sujan Singh - ठाकुर सुजान सिंह

आज हम 22 वर्षीय वीर योद्धा Thakur Sujan Singh के बारे जानेंगे, जो रणभूमि में अपने धर्म और देश की रक्षा करते-करते, अपने नवविवाहित जिंदगी को दरकिनार कर, कटे हुए शीश को भूल दुश्मनों से लड़ते रहे।

जिसने विवाह के बारातियों सहित 500 सैनिकों के साथ मुगलों के 10 हजार सेना से युद्ध लड़ा था। नमस्कार दोस्तों मैं Jay Pandey आपका स्वागत करता हूं आपके अपने ही ब्लॉग www.jaypandey111.blogspot.com पर।

दोस्तों भारत भूमि अनगिनत वीरों से भरी हुई है। जिनमें से कुछ के बारे में हमें जानकारी है और कुछ का हम नाम भी नहीं जानते।उन्हीं में से आज एक वीर योद्धा Thakur Sujan Singh की कहानी जानेंगे।

Thakur Sujan Singh - ठाकुर सुजान सिंह

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बात 7 मार्च 1679 ई0 की है, Thakur Sujan Singh अपनी शादी की बारात लेकर जा रहे थे, 22 वर्ष के ठाकुर सुजान सिंह किसी देवता की तरह लग रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो देवता अपनी बारात लेकर जा रहे हों।

उन्होंने अपने दुल्हन का मुख भी नहीं देखा था। शाम हो चुकी थी इसलिए रात्रि विश्राम के लिए "छापोली" में पड़ाव डाल दिये। कुछ ही क्षणों में उन्हें गायों में लगे घुंघरुओं की आवाजें सुनाई देने लगी।

आवाजें स्पष्ट नहीं थीं, फिर भी वे सुनने का प्रयास कर रहे थे, मानो वो आवाजें उनसे कुछ कह रही थी। Thakur Sujan Singh ने अपने लोगों से कहा- शायद ये चरवाहों की आवाज है जरा सुनो वे क्या कहना चाहते हैं?

गुप्तचरों ने सूचना दी कि युवराज ये लोग कह रहे है कि कोई फौज "देवड़े" पर आई है। वे चौंक पड़े और फिर कहा कि कैसी फौज? किसकी फौज? किस मंदिर पे आयी है?

जवाब आया "युवराज ये औरंगजेब की बहुत ही विशाल सेना है। जिसका सेनापति दराबखान है। जो खंडेला के बाहर पड़ाव डाल रखी है। कल खंडेला स्थित श्री कृष्ण मंदिर को तोड़ दिया जाएगा निर्णय हो चुका था।

एक ही पल में सब कुछ बदल गया। शादी के खुशनुमा चहरे अचानक सख्त हो चुके थे। कोमल शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका था।

जो बाराती थे, वे सेना में तब्दील हो चुके थे, वे अपने सेना के लोगों से विचार विमर्श करने लगे । तब उनको पता चला कि उनके साथ सिर्फ 70 सेना थी।

Thakur Sujan Singh 1679 - ठाकुर सुजान सिंह 1679
ठाकुर सुजान सिंह

Thakur Sujan Singh 1679 - ठाकुर सुजान सिंह 1679

तब वे रात्रि के समय में बिना एक पल गंवाए उन्होंने पास के गांव से कुछ आदमी इकठ्ठे कर लिए। करीब 500 घुड़सवार अब उनके पास हो चुके थे।

अचानक Thakur Sujan Singh को अपनी पत्नी की याद आयी, जिसका मुख भी वे नहीं देख पाए थे, जो डोली में बैठी हुई थी। क्या बीतेगी उसपे, जिसने अपनी लाल जोड़े भी ठीक से नहीं देखी हो।

वे तरह-तरह के विचारों में खोए हुए थे। तभी उनके कानों में अपनी माँ को दिए वचन याद आये। जिसमें ठाकुर सुजान सिंह ने राजपूती धर्म को ना छोड़ने का वचन दिया था।

उनकी पत्नी भी सारी बातों को समझ चुकी थी। डोली के तरफ उनकी नजर गयी, उनकी पत्नी महँदी वाली हाथों को निकालकर इशारा कर रही थी। मुख पे प्रसन्नता के भाव थे।

वो एक सच्ची क्षत्राणी के कर्तब्य निभा रही थी। मानो वो खुद तलवार लेकर दुश्मन पे टूट पड़ना चाहती थी, परंतु ऐसा नहीं हो सकता था।

Thakur Sujan Singh ने डोली के पास जाकर डोली सहित अपनी पत्नी को प्रणाम किये और कहारों और नाई को डोली सुरक्षित अपने राज्य भेज देने का आदेश दिया।

खुद खंडेला को घेरकर उसकी चौकसी करने लगे। लोग कहते हैं कि मानो खुद कृष्ण उस मंदिर की चौकसी कर रहे थे। उनका मुखड़ा भी श्री कृष्ण की ही तरह चमक रहा था।

8 मार्च 1679 को दराबखान की सेना आमने सामने आ चुकी थी। महाकाल भक्त सुजान सिंह अपने इष्टदेव को याद किये। हर-हर महादेव के जयघोष और 10 हजार की मुगल सेना के साथ सुजान सिंह के 500 लोगो के बीच घनघोर युद्ध आरम्भ हो गया।

सुजान सिंह ने दराबखान को मारने के लिए उसकी ओर लपके और 40 मुगल सेना को मौत के घाट उतार दिए। ऐसे पराक्रम को देखकर दराबखान ने पीछे हटने में ही भलाई समझी। लेकिन Thakur Sujan Singh रुकने वाले नहीं थे।

जो भी उनके सामने आ रहा था वो मारा जा रहा था। ठाकुर सुजान सिंह साक्षात मृत्यु का रूप धारण करके युद्ध कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो खुद महाकाल ही युद्ध कर रहे हों।

Thakur Sujaan Singh - ठाकुर सुजान सिंह
ठाकुर सुजान सिंह

Sujan Singh aur Darabkhan ka yudh - दराबखान व सुजान सिंह का युद्ध

इस बीच कुछ लोगों की नजर ठाकुर सुजान सिंह पर पड़ी। लेकिन ये क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं! लोगों को घोर आश्चर्य हुआ!

लेकिन उनके अपने लोगों को ये समझते देर नहीं लगी कि ठाकुर सुजान सिंह तो कब के मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं। ये जो युद्ध कर रहे हैं, वे सुजान सिंह के इष्टदेव हैं।

सबों ने मन ही मन अपना शीश झुक कर इष्टदेव को प्रणाम किये। अब दराबखान मारा जा चुका था। मुगल सेना भाग रही थी, लेकिन ये क्या, Thakur Sujan Singh घोड़े पे सवार बिना सिर के ही मुगलों का संहार कर रहे थे।

उस युद्धभूमि में मृत्यु का ऐसा तांडव हुआ, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, मुगलों की 7 हजार सेना अकेले सुजान सिंह और उनके 500 सैनिकों के हाथों मारी जा चुकी थी।

बची खुची सेना पूर्ण रूप से भाग गई। तब ठाकुर सुजान सिंह जो सिर्फ शरीर मात्र बचे थे, मंदिर का रुख किये। इतिहासकार कहते हैं कि देखनेवालों को Thakur Sujan Singh के शरीर से अजीब विश्मित करने वाला प्रकाश निकल रहा था।

जिसमें सूर्य की रोशनी भी मन्द पड़ रही थी। ये देखकर उनके अपने लोग भी घबरा गए थे और सबों ने एक साथ श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे।

घोड़े से नीचे उतरने के बाद सुजान सिंह का शरीर मंदिर के प्रतिमा के सामने जाकर लुढ़क गया और एक शूरवीर योद्धा का अंत हो गया। "माँ भारती के इस शूरवीर योद्धा को कोटि-कोटि नमन!

तो दोस्तों ये थी भारत भूमि के महान योद्धा Thakur Sujan Singh की कहानी। पोस्ट कैसी लगी कॉमेंट कर जरूर बताएं धन्यवाद!

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