दोस्तों जब भी राक्षस की कहानी सुनने में आती है तो, हम सभी बातों को दरकिनार कर ध्यान से सुनते हैं। आज आप एक ऐसे महर्षि के बारे में जानेंगे, जिन्होंने सम्पूर्ण राक्षस जाति को अग्नि में भस्म करने का निर्णय कर यज्ञ आरंभ किया।
उनका क्रोध इतना भयानक था कि, यदि उन्हें ना रोका गया होता तो, संपूर्ण राक्षस जाति उस यज्ञ में आहुतियों की भांति भस्म हो जाती। परंतु कौन थे वो मुनि और क्यूं आया उन्हें रक्षसों पर इतना क्रोध आगे जानेंगे।
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दोस्तों Rakshas ki kahani में आज हम आपको महामुनि श्री पराशर जी के बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं।
Rakshas ki kahani। राक्षस की कहानी
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एक बार की बात है महर्षि पराशर जी के पिता को ऋषि विश्वामित्र के प्रेरणा से राक्षस ने खा लिया। जब पराशर जी ने सुना कि उनके पिता को विश्वामित्र की प्रेरणा से राक्षस ने खा लिया है, तो उनको बड़ा भारी क्रोध हुआ।
तब राक्षसों का ध्वंस करने के लिए पाराशर मुनि ने यज्ञ करना आरंभ किया। उस यज्ञ में सैकड़ों राक्षस जलकर भस्म हो गए। इस प्रकार उन राक्षसों को सर्वथा नष्ट होते देख पराशर जी के पितामह वशिष्ठजी उनसे बोले -
"हे वत्स! अत्यंत क्रोध करना ठीक नहीं अब इसे शांत करो। राक्षसों का कुछ भी अपराध नहीं है, तुम्हारे पिता के लिए तो ऐसा ही होना था। क्रोध तो मूर्खों को ही हुआ करता है, विचारवानों को भला कैसे हो सकता है?
भला कौन किसको मारता है? पुरुष स्वयं ही अपने किए का फल भोगता है। हे पराशर क्रोध तो मनुष्य के अत्यंत कष्ट से संचित यस और तप का भी प्रबल नाशक है।
हे तात इस लोक और परलोक दोनों को बिगाड़ने वाले इस क्रोध का महर्षिगण सर्वदा त्याग करते हैं, इसलिए तुम इसके वशीभूत मत हो।
अब इन बेचारे निरपराध राक्षसों को दग्ध करने से कोई लाभ नहीं अपने इस यज्ञ को समाप्त करो।
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साधुओं का धन तो सदा क्षमा ही है। तब महात्मा वशिष्ठ जी के इस प्रकार समझाने पर उनकी बातों के गौरव का विचार करके उन्होनें वह यज्ञ समाप्त कर दिया। इससे मुनिश्रेष्ठ भगवान् वशिष्ठजी बहुत प्रसन्न हुए।
उसी समय ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य जी भी वहां आए। तब पितामह वशिष्ठ जी ने उन्हें अर्घ्य दिया, तब वह महर्षि पुलस्त्यजी ने आसन ग्रहण करके पराशर जी से बोले-
तुमने चित्त में बड़ा बैरभाव रहने पर भी अपने बड़े - बूढ़े वशिष्ठ जी के कहने से क्षमा स्वीकार की है। इसलिए तुम संपूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता होगे। हे महाभाग! अत्यंत क्रोधित होने पर भी तुमने मेरी संतान का सर्वथा मूलोच्छेद नहीं किया।
अतः मैं तुम्हें एक और उत्तम वर देता हूं। हे वत्स तुम पुराण संहिता के वक्ता होगे और देवताओं के यथार्थ स्वरुप को जानोगे तथा मेरे प्रसाद से तुम्हारी निर्मल बुद्धि भोग और मोक्ष के उत्पन्न करने वाले कर्मों में निसंदेह हो जाएगी।
पुलस्त्य जी के इस तरह कहने के अनंतर पितामह भगवान वशिष्ठ जी बोले पुलस्त्य जी ने जो कुछ कहा है, वह सभी सत्य होगा।
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जय लक्ष्मीनारायण जी