Maharana Pratap - महाराणा प्रताप।

Maharana Pratap - महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप

Maharana Pratap: दोस्तों इस भारत भूमि ने समय - समय पर ऐसे वीरों को जन्म दिया है, जिन्होंने इसकी रक्षा करने के लिए हंसते - हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

आज भी हमारे वीर सरहदों पर इसकी रक्षा करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं और सक्षम भी हैं। उनको इसके लिए हम दिल से शत - शत नमन एवं धन्यवाद देते हैं।

क्योंकि आज वो हमारी रक्षा करने के लिए निरंतर बॉर्डर पर जागते हैं तो हम अपने घरों में चैन से सोते हैं।

लेकिन आज मैं आपको इतिहास से एक ऐसे वीर के बारे में जानकारी देने जा रहा हूं, जो हमेशा अपने त्याग और बलिदान के लिए जानें जाते हैं।

जी हां मित्रों आज हम आपको मेवाड़ के वीर सपूत महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के बारे में जानकारी देंगे। नमस्कार दोस्तों मैं JAY PANDEY आपका www.jaypandey.in वेबसाईट पर स्वागत करता हूं।

दोस्तों ऐसा कौन है जो हमारे वीर सपूत Maharana Pratap और उनके प्रिय घोड़े चेतक (Chetak) को नहीं जानता है। लेकिन आज हम आपको उनके जीवन के संघर्ष और उनके बारे में बताएंगे।

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Maharana Pratap - महाराणा प्रताप

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महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) भारत का एक ऐसा कोहिनूर हीरा जिसकी कीमत अनमोल है, जी हां जिसका कोई मोल नहीं।

क्योंकि जितना दुःख, त्याग और बलिदान उन्होंने सहा और उठाया अपनी भारत भूमि को बचाने में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति सह सकता है।

इस भूमि को बचाने में सिर्फ़ महाराणा प्रताप ( (Maharana Pratap) ही नहीं वल्कि उनके संपूर्ण परिवार ने बराबर भूमिका निभाई है।

वही नहीं दोस्तों उनका घोड़ा चेतक (Chetak) भी अपने प्राणों की आहुति दे दी परंतु जबतक जिंदा रहा अपने मालिक को हमेशा सुरक्षित रखा।

Maharana Pratap Ka Janm: वीर सपूत महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में 9 मई 1540 को हुआ था। विक्रम संवत के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को उनका जयंती मनाया जाता है। बचपन में राणा प्रताप को प्यार से लोग “कीका” कहकर बुलाते थे।

Maharana Pratap Ke Mata Pita Ka Naam: सबसे पहले जान ले कि महाराणा प्रताप “राणा सांगा” के पौत्र थे। उनके पिता का नाम “महाराणा उदयसिंह” और माता का नाम “जयवंत कंवर” अथवा “जीवत कंवर” नाम से जानी जाती थीं।

राजपूत राज्य में मेवाड़ का एक बड़ा विशिष्ट पहचान है, जिसमें भारतीय इतिहास के गौरव बाप्पा रावल, खुमाड़ प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदयसिंह और महाराणा प्रताप ने जन्म लिए।

महाराणा प्रताप उदयपुर शिशोदिया राजवंश के राजा थे। महाराणा प्रताप के कुलदेव “एकलिंगी महादेव” थे। बाप्पा रावल द्वारा 8वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर में “एकलिंगी महादेव” को प्रतिष्ठित किया गया जो आज भी उदयपुर में स्थित है।

Maharana Pratap - महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप और उनका प्यारा घोड़ा चेतक।

Maharana Pratap Ka Ghoda - महाराणा प्रताप का घोड़ा।

Rana Pratap Ka Ghoda Chetak: महाराणा प्रताप के घोड़े “चेतक” (Chetak) का नाम किसने नहीं सुना। जी हां कहा जाता है राणा प्रताप का वजन 208 किलो का होता था, जब वह युद्ध करने जाते थे।

जिसमें 72 किलो कवच 81 किलो का भाला बाकी ढाल, कृपाण, तलवार आदि शामिल थे। इससे आप खुद सोचिए कि आखिर उनका वजन उठाने वाला वह घोड़ा कोई आम घोड़ा नही था।

जो इतने वजन उठा कर महाराणा प्रताप को ले हवा से बातें करता था। चेतक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था। हल्दी घाटी 1576 के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था।

युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल रहा। उस क्रम में चेतक ने 26 फिट नाले को छलांग लगाकर पार किया, लेकिन बुरी तरह घायल हो जाने के कारण अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ।

चेतक गुजरात के चारण व्यापारी काठियावाड़ी नस्ल के तीन घोडे चेतक, त्राटक और अटक लेकर मेवाड़ आए। अटक परीक्षण में काम आ गया।

त्राटक को महाराणा प्रताप ने अपने छोटे भाई शक्ती सिंह को दे दिया और चेतक जिसका रंग नीला था स्वयं रख लिया। इन घोड़ों के बदले महाराणा ने चारण व्यापारियों को जागीर में गढ़वाड़ा और भानोल नामक दो गाँव भेंट किए।

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Maharana Prtap Ki Saltnat - महाराणा प्रताप की सल्तनत।

महाराणा प्रताप के समय मुगल सम्राट अकबर का शासन दिल्ली पर था। जो भारत के सभी राजाओं को अपने अधीन कर इस्लामिक परचम संपूर्ण भारत में स्थापित करना चाहता था।

महाराणा प्रताप ने एकलिंगी महाराज की कसम खाई कि वह अकबर को अपना राजा नही स्वीकार करेंगे और उसे हमेशा तुर्क ही कहेंगे। अकबर ने चार बार अपने शांतिदूत भेजें महाराणा प्रताप को समझाने के लिए मगर हर बार उन्होंने इंकार कर दिया।

महाराणा प्रताप ने 30 वर्षो तक अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा कर उससे निरंतर संघर्ष करते रहे और उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर भी इसकी आस लिए इस दुनिया से चला गया।

महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक “गोगुंदा” में हुआ। युद्ध के कारण उदयसिंह ने चित्तौड़ को छोड़ अरावली पर्वत पर अपना डेरा डाला और उदयपुर नाम से नया नगर बनाया जो बाद में उसका राजधानी बना।

उदयसिंह अपनी मृत्यु के समय भटियानी रानी के प्रति अपनी आसक्ति के कारण छोटे पुत्र जगमल को उदयपुर की गद्दी सौंप दी। जबकि ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते महाराणा प्रताप का इसपर हक बनता था।

उदय सिंह के इस फैसले से उस समय सरदारों और जागीरदारों ने उनका विरोध किया था। वहीं मेवाड़ की जनता भी महाराणा प्रताप को ही प्रेम करती थी। जगमल को गद्दी मिलने से उनके मन में भी विरोध और असंतोष उत्पन्न हुआ।

इसके फलस्वरूप 1 मार्च 1576 को राणा प्रताप को मेवाड़ के गद्दी पर बैठाया। जिससे जगमल क्रोधित होकर महाराणा प्रताप का दुश्मन बन गया और मुगल शासक अकबर से जा मिला।

अकबर ने भी जगमल को जहाजपुर का इलाका देकर अपने पक्ष में कर लिया। इसके बाद अकबर ने जगमल को सिरोही का आधा राज्य भी दे दिया। जिससे जगमल सिरोही के राजा सुरतान देवड़ा का दुश्मन बन गया और 1583 में हुए एक युद्ध में जगमल मारा गया। 

महाराणा प्रताप मेवाड़ की राजधानी उदयपुर में 1568 से 1597 ईस्वी तक शासन किए। परंतु उदयपुर पर तुर्क यवन आसानी से आक्रमण कर सकते हैं ये सोच तथा सामंतो की राय से उदयपुर छोड़ कुंभलगढ़ और गोगुंदा के पहाड़ी इलाकों को अपना केंद्र बनाया।

Maharana Pratap - महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप

Haldi Ghati Ka Yudh - हल्दी घाटी का युद्ध।

जैसे आंखो में छोटा सा कंकड़ चुभता है उसी प्रकार मेवाड़ अकबर को चुभता था। अब अकबर मेवाड़ को अपना बनाने के लिए निरंतर प्रयास में लग गया।

अज़मेर को अपना केंद्र बनाकर अकबर ने कई बार आक्रमण किया पर हर बार असफलता ही हाथ लगी। महाराणा प्रताप की युद्ध कौशल और उदारता ऐसी थी कि दुश्मन भी कायल थे।

युद्ध में मुगलों की औरतों को सम्मान पूर्वक मुगलों को वापस कर दिया करते थे। इतनी विशाल सेना, उन्नत युद्ध पद्धति, गोले बारूद के पश्चात भी अकबर राणा प्रताप को झुका ना सका।

तब उसने आमेर के महाराजा भगवानदास के भतीजे मानसिंह को जिसकी बुआ जोधाबाई जो अकबर से ब्याही गई थी उसे एक विशाल सेना के साथ डूंगरपुर और उदयपुर के शासकों को अधीनता स्वीकार करने के लिए भेजा।

मानसिंह के विशाल सेना के सामने डूंगरपुर के शासक प्रतिरोध न कर सके। फिर मानसिंह राणा प्रताप को समझाने के लिए उदयपुर पहुंचे। परंतु राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर उसके विशाल सेना से युद्ध करने का घोषणा कर दिया।

जब मानसिंह खाली हाथ अकबर के पास लौटा तो, अकबर इसे अपनी हार मान, आसफ खां और मानसिंह के अगुआई में एक विशाल सेना के साथ महाराणा प्रताप पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया।

अंततः 30 मई सन् 1576 दिन बुधवार को हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हुआ। राजपूत, मुग़ल और पठान योद्धा एक विशाल सेना व तोपखानों के साथ मेवाड़ पर टूट पड़े।

अकबर के सेनापति महावत खां, आसफ खां तथा मानसिंह के साथ शहजादा सलीम अर्थात् जहांगीर भी उस विशाल सेना का संचालन कर रहे थे। इतिहासकारों के अनुसार 80 हज़ार से 1 लाख तक की सेना बताई जाती है।

महाराणा प्रताप ने अकबर के सैनिकों से भयंकर युद्ध किया और दांत खट्टे कर दिए। कुछ विकट परिस्थितियों में झाला सरदार मानसिंह ने राणा प्रताप के मुकुट और छत्र अपने सिर पर रख लिया, जिससे मुगल उन्हें ही प्रताप समझ पीछा किया।

ऐसे में महाराणा प्रताप युद्ध से निकलने में कामयाब रहे। अकबर को इस असफलता से बहुत गुस्सा आया। इसी बीच विक्रम संवत 1633 अर्थात् सन 1576 में अकबर शिकार के बहाने उस क्षेत्र में पहुंचा और प्रताप पर हमला कर दिया।

राणा प्रताप ने भी तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए खुद को पहाड़ी क्षेत्रों में स्थापित किया और लघु तथा छापेमार युद्ध प्रणाली से शत्रु सेना को हतोत्साहित किया।

इसके बाद अकबर ने स्थिति को देखते हुए वहां से निकलना उचित समझा। महाराणा प्रताप ने जब अकबर के सेनापति मिर्ज़ा खां के सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया, तो उनके सभी स्त्रियों को सम्मान सहित सुरक्षित मिर्ज़ा खां को वापस कर दिया।

Maharana Pratap - महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप

Maharana Pratap Aur Jahangir Yudhh - महाराणा प्रताप और जहांगीर युद्ध।

इसके बाद जहांगीर ने 80 हज़ार सेना के साथ महाराणा प्रताप पर फिर आक्रमण किया। जिसमें मात्र 20 हज़ार राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने उनका सामना किया और जहंगीर को युद्ध से बचकर भागने पर मजबूर कर दिया।

इसके बाद सलीम ने फिर अपनी सेना इकट्ठा की और फिर आक्रमण किया। इस बार भयंकर युद्ध हुआ और इसी में महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक घायल हुआ था। राजपूतों ने भी बहादुरी से सामना किया, परंतु इसबार किस्मत ने साथ नहीं दिया।

मुगलों की विशाल सेना और मैदानी तोपे और बंदूकों से सुसज्जित सेना के आगे सारी पराक्रम निष्फल हो गया। महाराणा प्रताप के यूद्ध में सम्मिलित 22 हज़ार सैनिकों में मात्र 8 हज़ार सैनिक ही शेष बचे।

Maharana Pratap Ka Vanvas: युद्ध में महाराणा प्रताप और उनके बचे हुए सैनिक किसी तरह युद्ध से निकलने में सफल रहे। इसके बाद महाराणा प्रताप पहाड़ों और जंगलों में अपना जीवन रानी, राजकुमार और राजकुमारी के साथ व्यतीत करने में मजबूर हो गए।

फिर भी गोरिल्ला युद्ध निति से कई बार अकबर मात दिए। अरावली की गुफाएं राणा प्रताप का नया आशियाना बना। यहां वे अपने परिवार के साथ घास की रोटियां, तालाब, पोखरे की जल तथा शिलाओ के बिस्तर से अपना जीवन निर्वाह करने पर मजबूर हुए।

परंतु मुगल अधीनता स्वीकार नहीं किया। लेकिन मुग़ल सम्राट अकबर के मन में कहीं न कहीं महाराणा प्रताप की स्वाधीनता खटकती रहती थी।

इसलिए उसने कई बार अपने शांतिदूत को अत्यंत प्रलोभन दे कर भेजें ताकि वे मुग़ल अधीनता “दीन - ऐ - ईलाही” स्वीकार कर लें।  कई छोटे राजाओ ने भी उनसे आग्रह किया कि वह उनके राज्य में रहें, परंतु राणा प्रताप ने उनका हर प्रस्ताव ठुकरा दिया।

क्योंकि उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि, जबतक मेवाड़ आज़ाद नहीं होता, वह राजमहलो के सुख त्याग कंद मूल फल खाकर जंगल में जीवन व्यतीत करेंगे। आज भी राणा प्रताप से जुड़े कुछ लोग अपना घर सिर्फ़ इसलिए नहीं बनाते।

क्यूंकि उनका राजा बिना घर के जीवन व्यतीत किया था। उनका यह भी कहना है कि उनका राजा जरूर वापस लौटेगा। धन्य है ऐसे दृढ़ विश्वास करने वाले लोग।

Maharana Pratap - महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप और भामाशाह

Rana Pratap Ko Bhamashah Ka Madad - भामाशाह का राणा प्रताप को मदद।

मेवाड़ के भामाशाह ने मदद करते हुए अपनी सम्पूर्ण संपत्ति महाराणा प्रताप के चरणों में समर्पित कर दिया। भामाशाह ने राणा प्रताप को 20 लाख अशर्फियां और 25 लाख रुपए भेंट की।

भामाशाह के इतने अधिक मात्रा में भेंट किए संपत्ति से राणा प्रताप ने पुनः अपनी सैन्य शक्ति का गठन किया। महाराणा प्रताप ने पुनः कुम्भलगढ़ पर अपना कब्ज़ा जमाते हुए अन्य स्थानों पर आक्रमण करते रहे।

इधर अकबर ने भी विक्रम संवत 1635 में शाहबाज खान के नेतृत्व में एक विशाल सेना मेवाड़ भेजी। शाहबाज खान अपने विशाल सेना और स्थानीय लोगों की मदद से बैशाख कृष्णपक्ष 12वीं तिथि को कुंभलगढ़ और केलवाड़ पर कब्ज़ा कर लिया।

गोगुंदा और उदयपुर क्षेत्र में भारी लूटपाट की। ऐसे में राणा प्रताप ने शाहबाज खान के विशाल सेना का सामना करते हुए खुद को सुरक्षित रखा और पुनः चावंड पर कब्ज़ा किया।

फिर अकबर द्वारा भेजा शाहबाज खान हार कर अकबर के पास लौट गया। महाराणा प्रताप ने धीरे-धीरे चित्तौड़ को छोड़ बाकी सभी दुर्गों को पुनः शत्रु से जीत लिया।

जिसमें उदयपुर को अपना राजधानी बनाया। मुगलों के घटते प्रभाव तथा अपने दृढ़ आत्मबल से राणा प्रताप ने चित्तौड़गढ़ और मांडलगढ़ सहित सम्पूर्ण मेवाड़ पर अपना अधिकार कर लिया।

बहलोल खान की मृत्यू: इसके बाद मुगलों ने कई बार महाराणा प्रताप पर आक्रमण किया मगर हर बार मुंह की खानी पड़ी। हल्दीघाटी युद्ध के बाद लगभग 85% मेवाड़ पर महाराणा प्रताप का अधिकार था।

मुगल सेना के 36000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके 6 वर्ष बाद दिवेर का भयानक युद्ध हुआ। जिसमें राणा प्रताप ने बहलाेल खान को घोड़े सहित अपने तलवार से चीर दिया।

Maharana Pratap - महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप और बहलोल खां

Maharana Pratap Ki Mrityu - राणा प्रताप की मृत्यु।

परन्तु जैसे विधि का विधान है कि जिसने जन्म लिया उसका मरना तय है। उसी प्रकार युद्ध और शिकार के दौरान लगी चोटों के वजह से 1597 में वह भारत का वीर पुत्र परमात्मा में लीन हो गया।

30 वर्षों तक कठिन परिस्थिति में रहने के बाद भी महाराणा प्रताप को अकबर न तो बंदी बना पाया और ना ही झुका सका। बचपन की ये श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा लिखी वीर रस से भरी राणा प्रताप की कविता तो याद ही होगा।

जिसे सुन आज भी खून नस-नस में दौड़ने लगता है। चेतक की कविता ऐसी की जिसमें चेतक की वीरता झलकती है। चेतक के वीरता की कविता को सुन आज भी आप मंत्रमुग्ध हो जायेंगे।

जो देश, धर्म और संस्कृति के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करता वही सच्चा महान है। वही सबके दिलों पर राज करता है जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी।

दोस्तों ये थी हमारे वीर सपूत महाराणा प्रताप के जीवन और संघर्षों की कुछ एतिहासिक कहानी। कैसी लगी आपको कमेंट जरुर करें। ऐसे वीर सपूत को मेरा नमस्कार। www.jaypandey.in पर अपना कीमती समय देने के लिए आपका धन्यवाद!

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जय लक्ष्मीनारायण जी

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