Malywan Sumali Aur Mali Ki Kahani - रावण के नानाओं और लंका नगरी की अद्भुत कहानी।

Ravan Ke Nana Malywan Sumali Aur Mali Ki Kahani
रावण के नाना की कहानी।
Malywan Sumali Aur Mali: माल्यवान, सुमाली और माली रावण के नाना जिन्होंने अपने बदले के लिए रावण को महारावण बनाया जानें उनके बारे में।


रावण के नानाओं का जन्म! जी हां मित्रों रावण के जीवन में रावण के नानाओं का, बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। जिसे हम धीरे धीरे, करके आगे जानेंगे। 


जैसा कि इससे पहले पोस्ट में हमने आपको बताया कि, भगवान शंकर और माता पार्वती जी ने राक्षस पुत्र सुकेश सहित अन्य राक्षस जाति को कुछ अद्भुत वरदान दिया, जिससे वह गर्व से चूर होकर घूमने लगा।


यदि आपने इससे पहले कि पोस्ट को नहीं पढ़ा है तो, मैं आपसे निवेदन करूंगा कि आप उस पोस्ट को जरूर देख लें, फिर आगे जानेंगे तो अच्छा लगेगा।


नमस्कार दोस्तों मैं JAY PANDEY आपका स्वागत करता हूं www.jaypandey.in पर। दोस्तो आज हम माल्यवान, सुमालि और माली रावण के नानाओ के बारे में जानेंगे।

$ads={1}


Malywan Sumali Aur Mali Ki Kahani - माल्यवान, सुमाली और माली की कहानी।

इसे भी पढ़ें: राक्षस और यक्ष का जन्म कैसे हुआ?

सुकेश को विश्वासु के समान तेजस्वी धार्मिक एवं वर प्राप्त देखकर, “ग्रामणी” नाम की गन्धर्व ने अपनी पुत्री “देववती” जो लक्ष्मी के समान दिव्य स्वरूप वाली और अपनी सुंदरता के कारण तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी।


उसका विवाह राक्षस पुत्र सुकेश के साथ कर दिया। यह देववती नामक कन्या भी वरदान के रूप में मिले ऐश्वर्य की भांति पति को पाकर इस प्रकार संतुष्ट हो गई, जैसे किसी निर्धन व्यक्ति को धन का ढेर मिल गया हो।


उसके साथ रहते हुए वह राक्षसराज भी इस प्रकार सुशोभित होने लगा, जिस प्रकार महागज के साथ कोई हथिनी सुशोभित होती है। इसके पश्चात् सुकेश ने देववती के गर्भ से अग्नि के समान तीन तेजस्वी पुत्रों को उत्पन्न किया।


उन तीनों के नाम माल्यवान, सुमाली तथा माली थे। वे तीनों सर्व शक्तिमानों एवं बलधारियों में श्रेष्ठ थे। शिव जी के समान शक्तिशाली उन तीनों को देखकर राक्षस राज सुकेश बहुत प्रसन्न हुआ।


ये तीनों पुत्र अग्नियों के समान तेजस्वी तथा तीनों लोकों के समान सुस्थिर थे। तीनों रोगों के समान भयंकर तथा मन्त्रों के समान उग्र थे। वे तीनों पुत्र त्रिविध अग्नियों के समान तेजस्वी थे।


जिस प्रकार उपेक्षित किए जाने पर रोग बढ़ने लगता है, उसी प्रकार वह तीनों राक्षस पुत्र भी बढ़ने लगे। जब उन्हें यह पता चला कि उनके पिता ने घोर तपस्या करके वर प्राप्त किया था।


तो वे तीनों भाई भी तपस्या करने का निश्चय कर मेरु पर्वत की ओर चले गए। वे तीनों कठोर एवं दृढ़ नियमों का पालन करते हुए वहां तपस्या करने लगे।


Malywan Sumali Aur Mali Ki Kahani
माल्यवान सुमाली और माली

Ravan Ke Nanao Ka Kya Naam Tha - रावण के कितने नाना थे?

इसे भी पढ़ें: रावण के पिता का जन्म अद्भूत कहानी।

उनकी उस तपस्या से सभी प्राणी भयभीत थे। भूमि अर्थात् पृथ्वी पर आर्जव, सत्य, शम आदि से युक्त होकर घोर तपस्या द्वारा उन तीनों ने देवताओं, असुरों और मनुष्यों को संतप्त कर दिया।


उस समय प्रजापति चतुर्मुख ब्रह्मा जी विमान पर सवार होकर वहां पहुंचे। उन्होंने सुकेश के तीनों पुत्रों से कहा मैं तुम्हें वर देने के लिए आया हूँ।


इन्द्र तथा अन्य देवताओं से घिरे ब्रह्मा जी वरदान देने आए हैं। यह जानकर वे तीनों पेड़ की भांति कांपते हुए बोले हे देव! यदि हमारी तपस्या से संतुष्ट तथा प्रसन्न होकर आप हमें वर देने आए हैं।


तो आप हमको शत्रु नाशक अजेय तथा चिरंजीवी होने के साथ साथ यह वरदान दें, कि हम तीनों एक-दूसरे के अनुकूल तथा प्रभावशाली बने रहें। उनकी बात सुनकर प्रजापति ब्रह्मा जी ने कहा ऐसा ही होगा।


इसके पश्चात् ब्राह्मण वत्सल ब्रह्माजी ब्रह्म लोक को चले गए। वरदान पाकर वे तीनों राक्षस देवताओं और असुरों सभी को निर्भय होकर कष्ट देने लगे।


जिस प्रकार नरक लोक में पड़े हुए मनुष्य असहाय हो जाते हैं, उसी प्रकार उनके द्वारा सताए गए ऋषि, वृन्द एवं चारण भी असहाय हो गए।


प्रसन्नता और उत्साह से भरकर एक दिन उन तीनों ने शिल्प कारों में श्रेष्ठ विश्वकर्मा जी से कहा हे महामने! जो बल, तेज तथा ओज से सम्पन्न होने के कारण आप महान बने हैं।


अपनी शक्ति द्वारा उन देवताओं के निमित्त मनोनुकूल भवनों का निर्माण करते हैं। अब आप हमारे लिए भी मेरु, हिमालय या मन्दराचल पर्वत के ऊपर भगवान् शिव के भवन की भांति एक विशाल एवं दिव्य निवास स्थान का निर्माण करें।


वीडियो देखें।

Ravan Ke Kitne Nana The - रावण के नाना का क्या नाम था?

इसे भी पढ़ें: कैसे बनें कुबेर देव?

यह बात सुनकर विश्वकर्मा जी ने उन्हें एक ऐसा निवास स्थल बताया जो इन्द्र की अमरावती पुरी के समान था। उन्होंने कहा दक्षिण समुद्र तट के किनारे त्रिकूट नाम का एक पर्वत है।


हे राक्षस राज! दूसरा सुवेल नाम का पर्वत है। उस पर्वत के मध्य में बादल के समान नीलवर्ण है। उसको चारों तरफ से इस प्रकार टांका गया है कि, वहां पर कोई पक्षी भी प्रवेश न कर पाए।


वहां पर सौ योजन लंबी तथा तीस योजन चौड़ी स्वर्ण प्राचीर अर्थात चहार दीवारी और स्वर्ण निर्मित फाटकों वाली लङ्का नाम की नगरी है। जिसको मैने इन्द्र की आज्ञा पर बनाया था।


हे दुर्धर्ष! उस नगरी में जाकर तुम सभी उसी प्रकार निवास करो जिस प्रकार इन्द्र अन्य देवताओं के साथ अमरावती में निवास करते हैं। जब तुम बहुत सारे राक्षसों के साथ उस नगरी में निवास करोगे, तो तुम शत्रुओं के लिए अजेय बन जाओगे।

$ads={2}

विश्वकर्मा जी के इन वचनों को सुनकर ये राक्षस अपने साथियों तथा अनुचरों के साथ उस लंका नगरी की ओर चल पड़े। उस नगरी की खाई और चहार दीवारी बहुत मजबूत थी।


उसमें अनेक स्वर्ण निर्मित भवन थे। उस लङ्का नगरी को देखते ही वे राक्षस वहां प्रसन्नता पूर्वक रहने लगे। तो दोस्तों ये थी माल्यवान, सुमाली और माली के जन्म और लंका में निवास की कहानी।


उम्मीद करता हूं पोस्ट आपको अच्छी लगी होगी। आगे भी ऐसी अद्भुत कहानी आपको प्राप्त होंगे। इसके लिए वेबसाईट पर ज़रुर विजिट करते रहें धन्यवाद।

Post a Comment

जय लक्ष्मीनारायण जी

और नया पुराने