पृथ्वीराज चौहान
Prithvi Raj Chauhan: पृथ्वीराज चौहान “शब्दभेदी धनुर्विद्या” के ज्ञाता, आंखे ना होते हुए भी एक ही बाण से “मोहम्मद गोरी” को मौत के घाट उतारा।
दोस्तों भारत की इस धरा पर तरह तरह के महान योद्धाओं ने जन्म लिया। अपने धरती मां की रक्षा करने के लिए अपने आप को न्यौछावर कर दिया।
जिसकी हमें कल्पना मात्र से ही डर लगता है, उन्होंने अपने शत्रुओं द्वारा उन सभी यातनाओं को झेला है। मगर अपने कर्तव्यों से कभी मूंह नहीं मोड़ा।
आज हम उन्हीं वीरों में से एक ऐसे वीर की कहानी जानेंगे। जिन्होने अपने शत्रु को युद्ध में 17 बार हराया। बाद में शत्रु ने उनको बंदी बनाया।
गर्म लोहे से उनकी आंखें फोड़ी, मगर अपने मित्र के इशारे पर बिन आंखों के अपने एक ही बाण से अपने शत्रु को मार डाला और हार कर भी युद्ध जीत लिया।
नमस्कार दोस्तों मैं JAY PANDEY आपका स्वागत करता हूं www.jaypandey.in पर। दोस्तों आज मैं वीर सम्राट “पृथ्वीराज चौहान” के बारे में कुछ जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूं। उनके बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है तो चलिए जानते हैं।
Prithvi Raj Chauhan Ka Janm - पृथ्वीराज चौहान का जन्म।
पृथ्वी राज चौहान अथवा “पृथ्वी राज तृतीय” जिन्हें “राय पिथौरा” भी कहा जाता है। वह चौहान वंश के प्रसिद्ध राजा थे। वह तोमर वंश के राजा “अनंग पाल” के दौहित्र अर्थात् बेटी के पुत्र थे।
उनके पिता का नाम राजा “सोमेश्वर चौहान” और माता का नाम “कर्पूरादेवी” था। पृथ्वी राज के जन्म को लेकर इतिहासकारों में अलग अलग मत है।
पृथ्वी राज महाकाव्य में उनका जन्म 1 जून 1163 ई० गुजरात के “पाटन पतंग” गांव में बताया गया है। वहीं कुछ इतिहासकारों ने 1166 तो कुछ ने 1168 ई० में बताया है।
उनके भाई का नाम “हरिराज चौहान” था। वे बचपन से ही साहसी और निर्भय थे। जब पृथ्वी राज द्वितीय की मृत्यु हुई, तब सोमेश्वर सिंह चौहान अजमेर के राजा बने।
पृथ्वी राज चौहान का जन्म तो “गुजरात” में हुआ था, लेकिन बाद में उन्हें “अजमेर” आना पड़ा। उस समय चौहान वंश में 6 भाषाओं संस्कृत, प्राकृत, मगधी, शौर, अपभ्रंश और पैशाचिक भाषा का प्रचलन था।
पृथ्वी राज चौहान को लगभग सभी भाषाओं का ज्ञान था। परंपरागत शिक्षा के उपरान्त वो सैन्य विद्या, पुराण, वेद, इतिहास, मीमांसा और चिकित्सा के पढ़ाई के साथ-साथ संगीत एवम चित्रकला में भी निपुण थे।
लेकिन सबसे खास बात उनमें ये थी कि उन्हें भगवान “श्री राम” के पिता “दशरथ जी” की तरह “शब्दभेदी बाण” चलाना आता था। यानि आवाज़ सुनकर लक्ष्य पर बाण चलाने में सक्षम थे।
यही एक विद्या ने उन्हें इतना महान बनाया कि, मरने के अंतिम क्षणों में बीना आंखो के उन्होंने अपने शत्रु को मारकर चैन की सांस ली।
पृथ्वीराज चौहान की कहानी। |
पृथ्वीराज चौहान का राज्याभिषेक कब हुआ - पृथ्वीराज चौहान राजा कब बने?
पृथ्वी राज चौहान जब 13 वर्ष के हुए, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। जिसके बाद पृथ्वी राज चौहान को अज़मेर का शासक घोषित किया गया।
उस समय उनके दादा “अगम्म” दिल्ली के शासक थे। अगम्म ने चौहान के वीरता और साहस को देखकर उन्हें दिल्ली का शासक बनाया। इतिहासकारों के अनुसार उनके पास एक विशाल सेना थी।
जिसमें 300 हाथी, 3 लाख घुड़सवार और विशाल पैदल सैनिक थे। दिल्ली की गद्दी संभालते ही पृथ्वीराज चौहान ने “राय पिथौरा” का निर्माण कराया।
कहा जाता है कि पृथ्वी राज चौहान कम उम्र में ही गुजरात के शासक “भीमदेव” को हराकर अपना अधिकार जमा लिया था।
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पृथ्वीराज चौहान की पत्नी का क्या नाम था - पृथ्वी राज चौहान की कितनी पत्नीयां थी?
पृथ्वीराज चौहान के पत्नियों में सबसे चर्चित नाम “संयोगिता” है।पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की 5 पत्नियां थीं। जिनका नाम जम्बावती पड़िहारी, पंवरी इंन्छनी, शशिव्रता, हंसावती और संयोगिता गहड़वाल था।
संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी। ये वही जयचंद है जिसकी वजह से पृथ्वीराज चौहान को हार का मुंह देखना पड़ा था। कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान एक दूसरे से प्रेम करते थे।
जबकि जयचंद पृथ्वीराज चौहान को पसंद नहीं करते थे। इसी लिए संयोगिता के स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा को द्वारपाल के रुप में जयचंद ने लगाया था।
जब स्वयंवर में संयोगिता को वर चुनने का अधिकार मिला तो उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के प्रतिमा को ही वरमाला पहनाया। यह देख सब चौंक गए मगर करते भी क्या क्यूंकि वो पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करती थीं।
तबतक पृथ्वीराज चौहान भी तैयारी कर चुके थे, संयोगिता को लाने की। उसी समय उसी सभा से पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता का हरण उनकी इच्छानुसार कर “गंधर्व विवाह” किया।
इस घटना से जयचन्द की उसी के भरी सभा में भारी बेइज्जती हुई। तभी से जयचंद से उनकी दुश्मनी और बढ़ गई और जयचन्द भी तभी से पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के फिराक में पड़ गया।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता।
तराइन का युद्ध कब हुआ - पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को कितनी बार हराया?
पृथ्वीराज चौहान ने 1186 से 1191 ई० के बीच कई बार मोहम्मद गोरी को युद्ध में हराया। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 7 बार, पृथ्वीराज प्रबन्ध के अनुसार 8 बार, पृथ्वीराज रासो के अनुसार 21 बार और प्रबन्ध चिंतामणि के अनुसार 23 बार हराया है।
कुछ मुस्लिम श्रोत के अनुसार मात्र तराइन का प्रथम और द्वितीय युद्धों का जिक्र मिलता है। तराइन के पहले युद्ध 1191 ई० में मोहम्मद गोरी बुरी तरह हारा था।
कहा जाता है कि मोहम्मद गोरी को पहली युद्ध में, उसी के एक सैनिक ने अधमरे हाल में, अपने घोड़े पर चढ़ाकर युद्ध से भाग गया। उसकी सेना भी डर कर युद्ध से भागने लगी।
पृथ्वीराज ने भी भागते हुए सेना और मोहम्मद गोरी का पीछा नहीं किया। ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 17 बार युद्ध में हराकर बंदी बनाया और फिर छोड़ दिया। प्रबंधकोश के अनुसार 20 बार बंदी बनाए जानें का जिक्र है।
जयचंद कौन था - पृथ्वीराज चौहान की हार का कारण।
1191 ई० में बुरी तरह हारने पर भी मोहम्मद गोरी 1192 ई० में फिर से युद्ध करने लौट आया। मगर हर बार क़िस्मत पृथ्वीराज चौहान का साथ दे जरुरी नहीं।
क्योंकि इस बार मोहम्मद गोरी को जयचंद का साथ मिल गया था। जयचंद भी लंबे समय से पृथ्वीराज चौहान से बदला लेना चाहता था और ये सबसे सुनहरा मौका था।
जयचंद जी हां पृथ्वीराज चौहान के ससुर अर्थात् उनकी गंधर्व विवाहिता पत्नी संयोगिता के पिता। फिर क्या था जयचंद पहले से ही पृथ्वीराज चौहान को पसंद नहीं करते थे, उसपर बेटी को हरण कर और दुश्मनी।
इसबार 18वी युद्ध में पृथ्वीराज चौहान हार गए और मोहम्मद गोरी ने उन्हें बंदी बना लिया। युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के परम् मित्र चंदवरदाई भी बंदी बनाए गए। मोहम्मद गोरी दोनों को साथ लेकर गया।
मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को सजा के तौर पर, उनकी दोनों आंखो को गर्म सलाखों से फोड़वा दिया। लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने हिम्मत नहीं हारी और बीना आंखो के ही जीवित रहे।
पृथ्वीराज चौहान।
पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को कैसे मारा - मोहम्मद गोरी कैसे मरा?
जैसा कि पृथ्वीराज चौहान को शब्दभेदी धनुर्विद्या आती थी। इसलिए उनके मित्र चंदवरदाई मोहम्मद गोरी से उनकी आखरी इच्छा के अनुसार आग्रह किया करते कि, एक बार इसका प्रदर्शन किया जाय।
इसलिए एक दिन मोहम्मद गोरी ने इसकी आज्ञा दे दी कि जरूर देखेंगे। क्यूंकि मोहम्मद गोरी को भी खबर थी कि पृथ्वीराज को शब्दभेदी धनुर्विद्या आती है।
इस प्रकार एक दिन प्रदर्शन का आयोजन किया जाता है, और पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चंदबरदाई दोनों ही मोहम्मद गोरी के सम्मुख उपस्थित थे।
चूंकि समस्या ये थी कि जबतक मोहम्मद गोरी किसी भी तरीके से आवाज नहीं करता तबतक बाण चलाना संभव नहीं था। इसलिए उनके मित्र चंदबरदाई ने मोहम्मद गोरी से कहा हे सम्राट!
मेरे मित्र पृथ्वीराज चौहान ये चाहते हैं कि, आप उनको आज्ञा दे तभी बाण चलाएंगे। क्यूंकि वो आपके बंदी हैं इसलिए जबतक राजा आज्ञा नहीं देता तब तक वह बाण नहीं चलाएंगे।
क्यूंकि मोहम्मद गोरी खुद देखना चाहता था कि शब्दों पर लक्ष्य को कैसे भेदा जा सकता है, उसने तुरंत हां कह दी। फिर चंदवरदाई ने अपने मित्र पृथ्वीराज चौहान को गले लगाया और कहा -
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“चार हाथ चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, ना चूको चौहान।।” फिर क्या था पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी के ऊंचाई का आंकड़ा लग गया कि सुल्तान कितनी ऊपर बैठा है।
अब जैसे ही सुल्तान ने आज्ञा दी, आवाज़ सुनते ही पृथ्वीराज चौहान ने अपना धनुष सुल्तान की ओर उचित ऊंचाई पर मोड़कर बाण चला दी। जबतक मोहम्मद गोरी कुछ समझ पाता, तबतक बाण उसके शरीर को बींध चुका था और उसकी मृत्यु हो गई थी।
इतिहासकारों के अनुसार माना जाता है कि सुल्तान के मृत्यु के बाद यातना और दुर्गति से बचने के लिए उनके परम मित्र चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान और स्वयं को मार डाला।
बेशक पृथ्वीराज चौहान की आंखे नहीं थी। परंतु उस वीर सपूत को अपने जीते जी अपने हाथ से अपने दुश्मन को मौत के घाट उतारने का संतोष और आत्मा को शांति अवश्य ही मिला।
मित्रों पृथ्वीराज चौहान की कहानी बहुत बड़ी है। उनके बारे में इतनी जानकारी एक छोटा अंश मात्र है। इसलिए इस वीर सपूत को सदैव नमन करता हूं। उम्मीद करता हूं आपको भी जानकारी प्राप्त हुई होगी धन्यवाद।
(डिस्क्लेमर: पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बारे में उपरोक्त तमाम जानकारियां विभिन्न स्रोतों से जुटाई गई हैं, उन्हीं को आधार बनाते हुए यह स्टोरी लिखी गई है।)
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जय लक्ष्मीनारायण जी