Bhagvat Katha Ka Mahatva - भागवत कथा का महत्व।

Bhagvat Katha Ka Mahatva - भागवत कथा का महत्व।
Bhagvat Katha Ka Mahatva - भागवत कथा का महत्व।

Bhagvat Katha Ka Mahatva - भागवत कथा का महत्व:

आपने शायद राजा परीक्षित का नाम सुना होगा। कलयुग के शुरुआत में ही सर्वप्रथम कलयुग से ग्रसित होने पर जिन्होंने सिर्फ़ सात दिन में भागवत कथा सुना और मोक्ष प्राप्त किया।

Bhagvat katha ka mahatva कुछ ऐसा है मित्रों कि कहा जाता है, जब किसी जीव का संपूर्ण पाप क्षीण होता है अर्थात् समाप्त हो मोक्ष को प्राप्त होता है,

तब भगवान श्री हरि विष्णू की कृपा से उस जीव को भागवत कथा का नाम सुनने, कहने या सुनाने का पुण्य प्राप्त होता है।

Bhagvat Katha Ka Mahatva - भागवत कथा का महत्व।

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इसलिए हर सनातनी से आग्रह है कि अपने जीवन काल में एक बार Bhagvat Katha अवश्य सुने या सुनाए अगर सक्षम हैं तो। Bahgvat katha ka mahatva पर भगवान श्री कृष्ण और उद्धव जी का एक प्रसंग है जिसे आगे आप जानेंगे।

नमस्कार दोस्तों मैं JAY PANDEY आपका स्वागत करता हूं आपके अपने ही ब्लॉग www.jaypandey111.blogspot.com पर। दोस्तों बड़े बड़े ऋषियों द्वारा Bhagvat katha ka mahatva का गुणगान किया गया है।

यहां तक कि स्वयं भगवान ने भी Bhagwat katha ka mahatva का उपाय कलयुग वासियों के लिए कर अपने धाम पर गए आईए जानते हैं।

एक बार की बात है जब भगवान श्री कृष्ण इस धरा धाम को छोड़कर अपने नित्य धाम को जाने लगे, तब उनके मुखारविंद से एकादश स्कंध का ज्ञान उपदेश सुनकर उद्धव जी ने पूछा-

हे गोविंद! अब आप तो अपने भक्तों का कार्य करके परमधाम को पधारना चाहते हैं, किंतु मेरे मन में एक बड़ी चिंता है! उसे सुनकर आप मुझे शांत कीजिए।

Bhagvat Katha Ka Mahatva - भागवत कथा का महत्व।
भगवान श्री कृष्ण और उद्धव जी।

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अब घोर कलिकाल आया ही समझिए इसलिए संसार में फिर अनेकों दुष्ट प्रकट हो जाएंगे। उनके संसर्ग में आने से सत्पुरुष भी उग्र प्रकृति के हो जाएंगे।

तब उनके भार से दबकर यह गोरुपी पृथ्वी किसकी शरण में जाएगी। हे कमलनयन! मुझे तो आपको छोड़कर इसकी रक्षा करने वाला कोई दूसरा नहीं दिखाई देता है।

इसलिए हे भक्तवत्सल! आप साधुओं पर कृपा करके यहां से मत जाइए। भगवान आपने निराकार और चिन्मात्र होकर भी भक्तों के लिए ही तो यह सगुण रूप धारण किया है।

फिर भला आप का वियोग होने पर भक्तजन पृथ्वी पर कैसे रह सकेंगे। निर्गुण उपासना में तो बड़ा कष्ट है, इसलिए कुछ और विचार कीजिए।

प्रभास क्षेत्र में उद्धव जी के यह वचन सुनकर भगवान श्री कृष्ण सोचने लगे कि भक्तों के अवलंब के लिए मुझे क्या व्यवस्था करनी चाहिए?

तब भगवान ने अपनी सारी शक्ति भागवत में रखते हुए अंतर्धान होकर इस भागवत समुद्र में प्रवेश कर गए। इसलिए यह भगवान की साक्षात शब्द मई मूर्ति है। इसलिए Bhagvat katha ka mahatva बहुत है।

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इसके सेवन, श्रवण, पाठ अथवा दर्शन से ही मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इसी से इसका सप्ताह श्रवण सबसे बढ़कर माना गया है और कलयुग में तो यह सब साधनों को छोड़कर प्रधान धर्म बताया गया है।

कलिकाल में यही ऐसा धर्म है जो दुख दरिद्रता दुर्भाग्य और पापों की सफाई कर देता है तथा काम क्रोध आदि शत्रु पर विजय दिलाता है।

अन्यथा भगवान की इस माया से पीछा छुड़ाना देवताओं के लिए भी कठिन है मनुष्य तो इसे छोड़ ही कैसे सकते हैं। अतः इस से छूटने के लिए भी सप्ताह श्रवण का विधान किया गया है।

यह भागवत पुराण जहां भी सुनाने और सुनने की तैयारी होती है वहां भक्ति देवी अपने आप प्रकट हो जाती हैं। शायद आप Bhagvat katha ka mahatva कितना है समझ रहे हैं।

Bhagvat katha ka mahatva कुछ ऐसा है कि एक बार जब समय सनकादी मुनीश्वर सप्ताह श्रवण की महिमा का बखान कर रहे थे।

वहां तरुण अवस्था को प्राप्त हुए अपने दोनों पुत्रों को साथ लिए विशुद्ध प्रेम रूपा भक्ति बार-बार श्री कृष्ण, गोविंद, हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव! आदि भगवान नामों का उच्चारण करती हुई अकस्मात प्रकट हो गई।

Bhakti devi
भक्ति देवी अपने पुत्र ज्ञान और वैराग्य के साथ

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भक्ति देवी को इस प्रकार प्रकट होकर देख सब आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने देखा की परम सुंदरी भक्ति रानी भागवत के अर्थों का आभूषण पहने वहां पधारीं।

मुनियों की सभा में सभी यह तर्क वितर्क करने लगे कि ये यहां कैसे आई? कैसे प्रविष्ट हुई? तब सनकादि मुनियों ने कहा यह Bhagvat ka mahatva है भक्ति देवी अभी-अभी कथा के अर्थ से निकली हैं।

उनके यह वचन सुनकर भक्ति ने अपने पुत्रों समेत अत्यंत विनम्र होकर सनत कुमार जी से कहा मैं कलयुग में नष्ट प्रायः हो गई थी। आपने कथामृत से सींच कर मुझे फिर पुष्ट कर दिया है।

अब आप बताइए कि मैं कहां रहूं? तब सनकादी मुनि ने उनसे कहा तुम भक्तों को भगवान का स्वरूप प्रदान करने वाली अनन्य प्रेम का संपादन करने वाली तथा संसार को रोग निर्मूल करने वाली हो।

इसलिए तुम धैर्य धारण करके नित्य निरंतर विष्णु भक्तों के त्रिदेव में ही निवास करो। यह कलयुग के दोष भले ही सारे संसार पर अपना प्रभाव डालें, किंतु Bhagvat katha ka mahatva ऐसा है कि तुम पर इनकी दृष्टि भी नहीं पड़ सकेगी।

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इस प्रकार उनकी आज्ञा पाते ही भक्ति तुरंत Bhagvat katha ka mahatva के कारण भगवत भक्तों की ह्रदयों में जा विराजी। जिनके हृदय में एकमात्र श्री हरि की भक्ति निवास करती है।

वे त्रिलोकी में अत्यंत निर्धन होने पर भी परम धन्य है। क्योंकि कई जन्मों के पाप नष्ट होने पर ही प्राणी के मन में यह विचार आता है कि वह श्री हरि की भक्ति करे।

इस भक्ति की डोरी से बंद कर स्वयं भगवान भी अपना परमधाम छोड़कर उनके ह्रदय में आकर बस जाते हैं। भूलोक में यह भागवत साक्षात परब्रह्म का विग्रह है हम इसकी महिमा कहां तक वर्णन करें।

तो दोस्तों यह है Bhagvat Katha Ka Mahatva पोस्ट आपको कैसा लगा कॉमेंट कर जरुर बताएं। अपना कीमती समय देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

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जय लक्ष्मीनारायण जी

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