Chhatrapati Shivaji Maharaj - छत्रपति शिवाजी महाराज शासन जीवन और संघर्ष।

Chhatrapati Shivaji Maharaj - छत्रपति शिवाजी महाराज शासन जीवन और संघर्ष।
छत्रपति शिवाजी महाराज शासन
Chatrapati Shivaji Maharaj: बचपन में खेल-खेल में ही किला जितने की सीखी थी कला।

भारतीय इतिहास उतना सरल शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। जितना कुछ लोगों ने छोटी सी कहानी बनाकार व्यक्त कर दिया।

जिन्हें हीरो बनाना था उसे बहुत ही कम शब्द से संबोधित किया और जिन्हें कम शब्दों में जिक्र किया जाना था उसपर भारी भरकम ग्रंथ लिख दिया।

काश अगर हमारे देश के वीर सपूतों के बारे में किसी ने अच्छी तरह से लिखना शुरू किया होता तो यकीन मानिए आज के जो ऐतिहासिक ग्रन्थ हैं उनसे भी बड़ा ग्रन्थ तैयार होता।

क्योंकि उनकी वीर गाथाएं अद्भुत हैं जिन्होंने इस भारत देश की रक्षा करने के लिए समय समय पर अपना जीवन समर्पित किया। उन्हीं में से एक हैं छत्रपति शिवाजी महाराज जी हां दोस्तों नाम तो सुना ही होगा।

नमस्कार दोस्तों मैं JAY PANDEY आपका स्वागत करता हूं www.jaypandey.in पर। दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे महान योद्धा की कहानी बताऊंगा। जिनके बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है।

जी हां दोस्तों आज मैं छत्रपति शिवाजी महाराज की कहानी आपको बताऊंगा। उनके संघर्षशील जीवन उनका शासन और उनकी और मुगलों के युद्ध तो चलिए जानते हैं।

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Chhatrapati Shivaji Maharaj - छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी।

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भारतीय गणराज्य के महानायक हिन्दू हृदय सम्राट मराठा गौरव छत्रपति शिवाजी महाराज जी का जन्म 19 फरवरी सन् 1630 ई० में एक मराठा परिवार में हुआ।

इनके पिता का नाम "शाहजी" और माता का नाम "जीजाबाई" था। पुणे के पास स्थित शिवनेरी का दुर्ग इनका जन्म स्थान है। उनकी माता जीजाबाई धार्मिक प्रवृत्ति की थी।

शिवाजी महाराज का लालन-पालन भी उन्हीं के छत्र-छाया में हुआ। जीजाबाई छत्रपति शिवाजी महाराज को रामायण, महाभारत तथा अन्य वीरों की कहानियां सुनाया करती थीं।

जिससे शिवाजी महाराज बचपन से ही निडर-निर्भीक और देशप्रेमी थे। छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा "कोणदेव" ने उन्हें उस समय के युद्ध विद्या के साथ ही धर्म, संस्कृति और राजनिति की शिक्षा में भी निपुण बनाया।

शिवाजी महाराज पूर्णतया कर्मठ, राष्ट्रप्रेमी और कर्त्तव्यपरायण तब बने जब उस समय के महान "संत रामदेव" के संपर्क में आए। उनके संपर्क में आने से शिवाजी महाराज कट्टर राष्ट्रभक्त बने।

छत्रपति शिवाजी महाराज बिना अपने गुरु की प्रेरणा के कोई कार्य नहीं करते थे। शिवाजी को “महान शिवाजी” बनाने में उनके गुरु का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

समर्थ रामदास: शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास जी “हिन्दू पद पादशाही” के संस्थापक का नाम भारत के संपूर्ण साधु संत और विद्वत समाज में विख्यात है। उन्होंने मराठी भाषा में एक ग्रन्थ की रचना की जिसका नाम “दासबोध” है।

उन्होने पूरे भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक 1100 मठ और अखाड़े स्थापित किए और समस्त जनता को स्वराज्य स्थापना के लिए प्रेरित किया।

समस्त अखाड़ों के स्थापना का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्हें हनुमान जी का अवतार माना जाता है जबकि वे स्वयं हनुमान जी के उपासक थे।

तुलजा भवानी के महान उपासक: छत्रपति शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के उस्मानाबाद स्थित मां तुलजा भवानी के महान उपासक थे। शिवाजी की कुल देवी मां तुलजा भवानी जो आज भी महाराष्ट्र में उपस्थित हैं।

मां तुलजा भवानी आज भी महाराष्ट्र के कुछ लोगों की कुल देवी के रुप में स्थित हैं। कहावत है कि मां तुलजा भवानी स्वयं प्रकट हो कर शिवाजी को तलवार प्रदान की थी। जो आज भी लंदन के संग्रहालय में रखी है।

छत्रपति शिवाजी महाराज के पत्नि का नाम "सईबाई निंबालकर" था। इनका विवाह 14 मई 1640 ई० में पुना के लाल महल में हुआ। इनके पुत्र का नाम संभाजी था।

Chhatrapati Shivaji Maharaj - छत्रपति शिवाजी महाराज शासन जीवन और संघर्ष।

Shivaji Maharaj Ka Rajyabhishek - शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक।

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शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक गर्मी के समय 1674 ई० में धूम-धाम से हुआ। उस समय भारत में औरंगजेब का शासन था। सारा भारत देश उसके और उसके आतताइयों से त्रस्त थी।

मानो सभी को किसी मसीहे का इंतजार था। ऐसे में राष्ट्रप्रेमी छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक होना एक शुभ संयोग साबित हुआ। छत्रपति शिवाजी महाराज भी औरंगजेब के नियमों के विरुद्ध थे।

शिवाजी महाराज का संपूर्ण संघर्ष उस कट्टरता व उद्दंडता के विरूद्ध था जो औरंगजेब और उसके छाया तले पल रहे उसके लोगों में था।

बचपन में खेल-खेल में सीखा किला जीतना: शिवाजी महाराज जब छोटे थे। तब वह अपने मित्रों के साथ मिलकर युद्ध लड़ने व किले जीतने का खेल खेलते थे।

उनका यही खेल एक दिन उनका युद्ध करने का आधार बन गया। युवावस्था में आते ही शिवाजी महाराज ने अपने इसी युद्ध विद्या से पुरंदर और तोरण जैसे राज्य पर अपना अधिकार जमाया।

इसबात को दिल्ली तक पहुंचने में जरा भी देर नहीं लगी थी कि शिवाजी महाराज ने अपने युद्ध कौशल से पुरंदर और तोरण को अपने आधीन कर लिया है। आक्रमणकारी यवन तुर्क और उनके सहायक शिवाजी का नाम सुनकर डरने लगे।

गोरिल्ला युद्ध: गोरिल्ला युद्ध निति के अविष्कारक महाराज शिवाजी ही थे। उनकी इसी नीति से वियतनामियों ने अमेरिका से जंगल जीत लिया था।

शिव सूत्र में उल्लिखित गोरिल्ला युद्ध एक प्रकार का छापामार युद्ध होता है, जिसमें अर्धसैनिक की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रु सेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण कर लड़ा जाता है।

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Chhatrapati Shivaji Ki Sainya Evam Rajya - छत्रपति शिवाजी की सैन्य व राज्यबेवस्था।

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शिवाजी महाराज जी की राज्य पूर्व में बागलाना को छूती थी तथा दक्षिण में नाशिक एवम् पूना जिले के बीचों बीच होते हुए एक अनिश्चित सीमा रेखा से होती हुई समस्त सतारा और कोल्हापुर के जिले के अधिकांश भाग अपने में समेटे हुए थी।

कर्नाटक के पश्चिमी भाग बाद में इसमें शामिल हुए। शिवाजी महाराज के स्वराज का यह क्षेत्र मुख्यतः तीन भागों में बटा हुआ था।

कोंकड़ का क्षेत्र: पूना से लेकर सलहर तक का क्षेत्र कोंकड़ का क्षेत्र कहलाता था। जिसमें उत्तरी कोंकण भी शामिल था, जो पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में था।

दक्षिणी कोंकड का क्षेत्र: इसके अंतर्गत उत्तरी कनारा क्षेत्र से दक्षिणी कोंकण के क्षेत्र तक जो अन्नाजी दत्तों के नियंत्रण में था।

धारवाड़ और कोफाल का क्षेत्र: इसके अंतर्गत दक्षिणी देश के जिले, जिनमें सतारा से लेकर धारवाड़ और कोफाल का क्षेत्र आते थे, जो दत्ताजी पंत के नियंत्रण में था। इन तीनों सूबों को परगनों और तालूको में विभाजित किया गया।

शिवाजी का दुर्ग या किला: मराठा सैन्य व्यवस्था के महत्पूर्ण लक्षण किले थे। इतिहासकारों के अनुसार शिवाजी के पास 250 किले थे और शिवाजी उनके देख-रेख पर बहुत ज्यादा धन खर्च करते थे।

शिवाजी ने कई दुर्गों को जीता जिनमें से एक था सिंहगढ़ का दुर्ग जिसके लिए उन्होंने तानाजी को भेजा। जिसमें ताना जी दुर्ग को जीत लिया मगर वीरगति को प्राप्त हुए।

एक मराठी भाषा में कहावत है जो बहुत ही प्रसिद्ध है कि “गढ़ आला पण सिंह गेला” अर्थात् गढ़ तो आया मगर सिंह (तानाजी) हमें छोड़कर चला गया।

1646 ई० में बीजापुर के सुल्तान राज्य सीमाओं के अंतर्गत रायगढ़ में चाकन, सिंहगढ़ और संपूर्ण पुरंदर दुर्ग भी उनके आधिकार में आ गया।

शिवाजी महाराज की सेना: शिवाजी जी ने एक स्थाई सेना का निर्माण किया था। जब उनका मृत्यु हुआ उस समय उनके सेना में 1260 हाथी, 30-40 हजार घुड़सवार और 100000 पद सैनिक थे। उनके तोपखानों की कोई ठीक ठाक जानकारी नहीं है।

घुड़सवार सेना बारगीर और सिलहदार दो भागों में विभक्त थी। बारगीर में घुड़सवार सैनिक थे जिन्हें राज्य की ओर से शस्त्र और घोड़े दिए जाते थे। किंतु सिलहदार को खुद अपनी व्यवस्था करनी पड़ती थी।

घुड़सवार सेना के सबसे छोटे गुट में 25 जवान होते थे, जिनके ऊपर एक हवलदार होता था। 5 हवलदारों का एक जुमला होता था, जिसके ऊपर एक जुमलादार होता था।

10 जुमलादारों का एक हजारी होता था, 5 हजारियों के ऊपर एक पंचहजारी होता था। जो सरनोबत के अंतर्गत आता था। राज्य की ओर से हर 25 टुकड़ियों के लिए एक नाविक और भिश्ती भी उपलब्ध कराया गया था।

Chhatrapati Shivaji Maharaj - छत्रपति शिवाजी महाराज शासन जीवन और संघर्ष।
शिवाजी अफ़ज़ल ख़ान को बाघनख से मारते हुए।

Shivaji Ne Afzal Khan Ko Kaise Mara - शिवाजी ने अफजल खान को कैसे मारा?

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शिवाजी के बढ़ते प्रताप से भयभीत जब बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह बंदी ना बना सका तो उसने शिवाजी के पिता शाहजी को बन्दी बना लिया। जब शिवाजी को पता चला तो गुस्से से आगबबूला हो गए।

तब उन्होंने अपने सूझ-बूझ से छापामारी युद्ध के तहत युद्ध कर अपने पिता को आदिलशाह के कब्जे से मुक्त कराया। अब इससे क्रोधित होकर बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को जिंदा या मुर्दा पकड़ने की घोषणा कर, अपने मक्कार सेनापति अफ़ज़ल ख़ान को भेजा।

अफ़ज़ल ख़ान ने शिवाजी से भाईचारे और सुलह करने का झूठा षडयंत्र रच संदेश भेजा और निहत्थे आने को निमंत्रित किया। लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज भी बहुत चालाक थे।

मुगलों की हर पैंतरे से वाकिफ थे इसलिए उन्होंने अपने खिसे में बाघनख जो की शेर के पंजे की तरह दिखने वाली शस्त्र जिसे उंगलियों में पहनकर मारा जाता है उसको छुपा कर अंदर गए।

अंदर अफ़ज़ल ख़ान पहले से ही अपने छोटे शस्त्र के साथ घात लगाए शिवाजी का इंतजार कर रहा था। जैसे ही शिवाजी महाराज ने अंदर प्रवेश किये।

धोखेबाज़ अफ़ज़ल ख़ान ने उनका स्वागत करते हुए उन्हें गले लगाने के बहाने अपने छुरे से उनको मारना चाहा। लेकिन शिवाजी महाराज ने भी उसके प्रहार करने से पहले ही अपने खींसे से बाघनख से उसपर प्रहार कर मार डाला।

अफ़ज़ल ख़ान को ये लगा था कि शिवाजी महाराज के पास कोई हथियार नहीं और इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा। लेकिन हुआ बिलकुल अलग।

जैसे ही उसके सेना को पता चला कि अफ़ज़ल ख़ान मारा गया तो उसकी सेना दुम दबाकर भाग खड़ी हुई। इस प्रकार शिवाजी महाराज ने अपने आप की रक्षा की।

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Chhatrapati Shivaji Aur Shaista Khan Ka Yudh - छत्रपति शिवाजी और शाइस्ता खान का युद्ध।

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शिवाजी महाराज जी की बढ़ती लोकप्रियता और ताकत से परेशान औरंजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार शाइस्ता खान को उनपर चढ़ाई करने को कहा। लेकिन उसे करारी हार मिली।

इसी युद्ध में शाइस्ता खान ने अपने पुत्र को खो दिया खुद उसको अपने उंगलियों से हाथ धोना पड़ा था। किसी तरह इस युद्ध में वह अपनी जान बचाकर भागा।

इस घटना के बाद औरंगजेब अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति मिर्ज़ा को 100000 सेना की फ़ौज के साथ राजा जयसिंह के नेतृत्व में शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए भेजा।

छत्रपति शिवाजी महाराज को कुचलने के लिए जयसिंह ने 24 अप्रैल 1665 ई० में बीजापुर के सुल्तान के साथ संधि कर पुरंदर के किले को अपने आधीन करने के प्रथम योजना के तहत वज्रगढ़ के किले को अपने आधीन कर लिया।

पुरंदर के किले की रक्षा करते हुए “मुरार जी बाजी” मारे गए, जो शिवाजी महाराज के बहुत वीर सेनानायक थे। शिवाजी ने देखा कि पुरंदर के किले को बचा पाना मुमकिन नहीं है।

इसलिए 22 जून 1665 ई० में जयसिंह से संधि करने की पेशकश की। दोनों पक्ष संधि करने के लिए तैयार हो गए और अपने-अपने शर्तों के अनुसार “पुरंदर की संधि” कर ली।

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शिवाजी ने शाइस्ता खान की उंगलियां काटी।

Aurangjeb Ne Kiya Shivaji Ko Nazarband - औरंगजेब द्वारा शिवाजी को नज़रबंद किया जाना।

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संधि करने के बाद शिवाजी महाराज मुगलों की गुलामी अर्थात बेशक उन्होंने संधि कर ली थी मगर वे मुगलों के किसी भी कानून को नहीं मानते थे। वे अपने राज्य में सिर्फ़ अपना कानून व्यवस्था बनाए रखते थे।

ये बात औरंगज़ेब को खटकती थी। इसलिए उसने शिवाजी को मिलने के लिए आग्रह किया। मिर्ज़ा राजा सिंह ने भी बहुत कोशिश की शिवाजी को औरंगज़ेब के दरबार में भेजने की।

तब बहुत प्रयास के बाद शिवाजी महाराज को जयसिंह द्वारा आश्वासन दिया गया कि सुल्तान से मिलने और सुरक्षित वापस लोटने की जिम्मेदारी उनकी है।

आखिर वो घड़ी आ ही गई जब शिवाजी को औरंगज़ेब के दरबार में जाना पड़ा। 5 मार्च 1666 को शिवाजी मां जीजाबाई को राज्य का संरक्षक बनाकर अपने बेटे संभाजी और 10 अर्द्रलियों के साथ आगरा रवाना हुए।

रास्ते में ही शिवाजी को औरंगज़ेब का पत्र मिला, जिसमें लिखा था आप यहां बिना किसी संकोच के पधारे। मुझसे मिलने पर आपको शाही सम्मान दिया जाएगा और घर भी जाने दिया जाएगा। मैं आपको एक शाही पोशाक भेज रहा हूं।

9 मई 1666 को शिवाजी महाराज अपने पुत्र संभाजी और 10 अर्दलियों के साथ आगरा पहुंचे। 12 मई 1666 को शिवाजी महाराज और औरंगजेब का मिलना तय हुआ। दिए हुए दिन के अनुसार शिवाजी अपने 10 अर्दलीयों के साथ औरंगज़ेब से मिलने दरबार में पहुंचे।

वहां उन्हें लाईन में इतने पीछे रखा गया कि औरंगजेब तक नजर भी नहीं पहुंचे और उनका उचित सम्मान भी नहीं हुआ। शिवाजी ने औरंगजेब को “नजर” के तौर पर 2000 सोने की मोहरे और 60000 रुपए नगद तोहफ़े के रूप में दिया।

इस दौरान शिवाजी ने औरंगजेब को 3 बार सलाम किया मगर औरंगजेब द्वारा शिवाजी को कोई जवाब नहीं मिला। उपहारों को स्वीकार कर औरंगजेब ने अपने मनसबदार से उन्हें एक जगह जानें को कहा।

दरबार फिर सामान्य रूप से चलने लगा। शिवाजी को औरंगज़ेब का यह रूखा व्यवहार पसंद नहीं आया। औरंगज़ेब ने शिवाजी और उनके अर्दलियों को जयपुर सराय में ठहरने का आदेश दिया।

शिवाजी जिस स्थान पर ठहरे हुए थे वहां औरंगज़ेब के सैनिक उनपर निगरानी रखते थे। ऐसे में शिवाजी को यह समझ में आ गया था कि हमें नज़रबंद किया गया है।

Chhatrapati Shivaji Maharaj - छत्रपति शिवाजी महाराज शासन जीवन और संघर्ष।
शिवाजी महाराज फलों की टोकरी में छिपकर भागते हुए।

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उन्होंने औरंगजेब को कई बार संदेश भेजा कि अब हमें घर वापस जाना चाहिए। परन्तु औरंगजेब कोई उत्तर नहीं देता था। शिवाजी बखूबी जानते थे कि वह यह चाहता है कि मैं कोई गलती करूं।

जिससे कि वह मुझे मार सके। फिर शिवाजी ने धैर्य से काम लिया और खुश रहने लगे। सैनिकों से बड़े अधिकारियों से हंसी मज़ाक करने लगे। इससे सभी को लगा कि शिवाजी यहां खुश हैं।

कुछ दिन बाद उन्होंने औरंगजेब को सूचना दी कि मेरे साथ आए लोगों को जानें दिया जाए। औरंगजेब ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और शिवाजी और संभाजी को छोड़कर बाकी सब को जानें दिया।

नज़रबंद रहते हुए शिवाजी ने ब्राह्मणों और संतों को फल और सब्जिया पेटियों में भिजवाने लगे। शुरू में तो सैनिकों द्वारा उन पेटियों को चेक किया जाता, लेकिन जब रोज़ की बात हो तो चेक करना छोड़ दिया।

एक दिन शिवाजी ने बीमार होने का बहाना बनाकर दर्द से कराहने लगे और कराहने की आवाज मुगल पहरेदारों को सुनाई देने लगी। इस बात को अच्छी तरह से जान लिया था कि फलों और सब्जियों की पेटियां चेक नहीं होती हैं।

उन्हीं पेटियों में छिपकर शिवाजी और संभाजी दोनों 13 अगस्त 1666 में बच निकले। बिस्तर पर अपने सौंतेले भाई "हिरोजी फरजाद" को लेटने को कहा जो हुबहू उन्हीं की तरह दिखते थे।

हीरोजी भी कंबल ओढ़े पूरी रात और दोपहर तक एक हाथ बाहर निकाल कर सोते रहे। ताकि सैनिक उनके हाथों में पड़े शिवाजी के कड़े को देख संतुष्ट रहें और ऐसा ही हुआ। शिवाजी सैनिकों से बचकर सीमा से बाहर निकल आए।

हीरोजी भी अगले दिन करीब तीन बजे बाहर निकले और सैनिकों से कहा की शिवाजी सो रहे हैं शोर ना करें। लेकिन कुछ देर बाद जब एक सैनिक अंदर गया तो वहां ना शिवाजी थे और ना ही संभाजी।

यह देख सैनिक अपने बड़े अधिकारी फलाब खां को यह बताया। यह खबर लेकर फलाब खां बदहवास हो औरंगजेब के पैरों पर गिर पड़ा और कहा महराज शिवाजी नादरत हो गया। नजाने उसे जमीं निगल गई या आसमां।

इस खबर से औरंगजेब को बड़ा झटका लगा क्योंकि उसके मनसूबे शिवाजी को मारने के अधूरे रह गए। इधर शिवाजी 22 सितंबर 1666 को अपने राज्य लौट आए।

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Chhatrapati Shivaji Maharaj Ki Mrityu - छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु।

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कहते हैं इस धरती पर कोई अमर नही है इसलिए जो भी आया है, उसे एक दिन इस धरा और कुटुंब को छोड़कर जाना ही है। ऐसा ही छ्त्रपति शिवाजी महाराज के साथ भी हुआ। 

भारत का वह वीर सम्राट 1680 ई० में एक लंबी बीमारी से इस धरती को छोड़ स्वर्ग चला गया और पीछे छोड़ गया अपना पराक्रम जिसे आप और हमने आज जाना।

1680 से 1689 तक राज्य की बागडोर ज्येष्ठ पुत्र संभाजी ने संभाला। संभाजी की पत्नी का नाम येसुबाई था। उनके पुत्र का नाम राजराम था जो बाद में राजगद्दी पर बैठा।

दोस्तों ये थी भारत के वीर सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज की दास्तान। पोस्ट आपको कैसी लगी कमेंट जरूर करें कोई सुझाव देना चाहते हैं तो बेझिझक कॉमेंट करें। अन्य किसी टॉपिक पर जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो कॉमेंट करें धन्यवाद!

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जय लक्ष्मीनारायण जी

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