Shiv Kis Dev Ka Dhyan Karte Hain |
Shiv Kis Dev Ka Dhyan Karte Hain
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एक बार इंद्र आदि देवताओं के साथ ब्रह्मा जी कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि रुद्रदेव शंकर ध्यान मग्न हैं। ब्रह्मा जी प्रणाम करके उनसे पूछा हे सदाशिव! आप किस देव का ध्यान कर रहे हैं?
मैं तो आपसे अतिरिक्त अन्य किसी देवता को नहीं जानता हूं। इन सभी देवताओं के साथ उस परम सार तत्व को जानने की मेरी इच्छा है कि, Shiv Kis Dev Ka Dhyan Karte Hain अतः आप उसका वर्णन करें।
भगवान शिव शंकर ने ब्रह्मा जी से कहा- मैं तो सर्वफलदायक, सर्वव्यापी, सर्वरूप, सभी प्राणियों के ह्रदय में अवस्थित परमात्मा तथा सर्वेश्वर उन भगवान विष्णु का ध्यान करता हूं।
हे पितामह! उन्हीं विष्णु की आराधना करने के लिए मैं शरीर में भस्म तथा सिर पर जटाजूट धारण करके व्रत आचरण में नीरत रहता हूं। जो सर्वव्यापक, जयसील, अद्वैत निराकार एवं पद्मनाभ हैं, जो निर्मल तथा पवित्र हंस स्वरूप हैं, मैं उन्हीं परमपद परमेश्वर भगवान श्री हरि का ध्यान करता हूं।
इस सारतत्व श्री विष्णु जिनमें संपूर्ण जगत का वास है, जो प्रलयकाल में संपूर्ण जगत को अपने अंदर प्रविष्ट कर लेते हैं, सब प्रकार से अपने को उन्हीं की शरण में करके मैं उन्हीं का चिंतन करता हूं।
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जिन सर्वभूतेश्वर में सत्वगुण, रजोगुण एवं तमोगुण एक सूत्र में चितमणियों के समान विद्यमान रहते हैं। जो हजार नेत्र, हजार चरण, हजार जंघा तथा श्रेष्ठ मुख से युक्त हैं।
जो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, स्थूल से भी स्थूल, गुरु से गुरुतम, पूज्य से पूज्यतम तथा श्रेष्ठ में भी श्रेष्ठतम हैं। जो सत्यों के परम सत्य और सत्यकर्मा कहे गए हैं।
जो पुराणपुरुष और द्वीजातियों में ब्राह्मण हैं। जो प्रलयकाल में संकर्षण कहलाते हैं, मैं उन्हीं परम उपासक की उपासना करता हूं।
श्री हरि: |
Shiv Kis Dev Ka Dhyan Karte Hain
जिन सत-असत से परे सत्यस्वरूप एकाक्षर (प्रणवस्वरूप) परब्रह्म की देव, यक्ष, राक्षस और नागगण अर्चना करते हैं, जिनमें सभी लोग उसी प्रकार स्फूरित होते हैं, जिस प्रकार जल में छोटी-छोटी मछलियां स्फूरित होती हैं।
जिनका मुख अग्नि, मस्तक दूलोक, नाभि आकाश, चरणयुग्म पृथ्वी और नेत्र सूर्य तथा चंद्र है। ऐसे उन विष्णु देव का मैं ध्यान करता हूं। जिनके उधर में स्वर्ग, मर्त्य एवं पाताल ये तीनो लोक विद्यमान है।
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समस्त दिशाएं जिनकी भुजाएं हैं, पवन जिनका उच्छवास है, मेघमालाओं का समूह जिनका केसपुंज है, नदियां ही जिनके सभी अंगों की संधियां हैं और चारों समुद्र जिनकी कुछी है।
जो कालातीत है, यज्ञ एवं सत-असत से परे हैं, जो जगत के आदि कारण तथा स्वयं अनादि हैं। ऐसे उन नारायण का मैं चिंतन करता हूं। जिनके मन से चंद्रमा, नेत्रों से सूर्य और मुख से अग्नि उत्पन्न है।
जिनके चरणों से पृथ्वी की, कानों से दिशाओं की और मस्तक से स्वर्ग की सृष्टि हुई है। जिन परमेश्वर से सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर तथा वंशानुचरित प्रवर्तित हुआ है। उन देव की मैं आराधना करता हूं।
इस प्रकार भगवान शंकर के कहने पर सबको संतुष्टि हुई और सभी ने भगवान श्री विष्णु को प्रणाम किया। तो दोस्तों जैसा कि आप जान चुके होंगे की भगवान Shiv Kis Dev Ka Dhyan Karte Hain आपको आर्टिकल कैसा लगा, कमेंट करके जरूर बताएं धन्यवाद।
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जय लक्ष्मीनारायण जी